
पटना । रविवार को बिजली गिरने से बिहार में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई। कोरोना से बीते करीब एक महीने में दो मौतें हुईं और अब तक 277 लोग संक्रमित पाए गए हैं। 12 करोड़ से अधिक आबादी वाले प्रदेश में मौतों और संक्रमितों का यह आंकड़ा न तो डराने वाला है और न चौंकाने वाला। आंकड़ों के आईने में देखें तो वज्रपात ज्यादा भयावह तस्वीर पेश करता है। बावजूद इसके कोरोना से ज्यादा सावधानी की जरूरत है, क्योंकि वज्रपात या चमकी बुखार के शिकार किसी और को संकट में नहीं डालते, लेकिन अदृश्य कोरोना तो अपने शिकार के लिए सिर्फ संपर्क खोजता है।
काश! कतर से लौटे सैफ, ओमान और स्कॉटलैंड से लौटे युवकों ने खुद की और अपनों की परवाह की होती तो शायद मुंगेर, सीवान और पटना में कोरोना की दहशत पैदा नहीं हुई होती। विदेश से लौटे इन तीनों की लापरवाही, नादानी या बचकानी हरकत ने किस तरह उनके अपनों को कोरोना का शिकार बना दिया। इसी तरह दूसरे प्रदेशों मसलन गुड़गांव, मुंबई, गुजरात के बड़ोदरा से विभिन्न माध्यमों से बिहार के विभिन्न हिस्सों में पहुंचे सात लोग अरवल, सारण और भागलपुर तक संक्रमण को पहुंचाने के वाहक बने।
विभिन्न प्रदेशों और देशों की सीमा लांघ कर अपने प्रदेश पहुंचे कोरोना के इन वाहकों के मामले में संबंधित सरकारों की उदासीनता या लापरवाही भी कम मायने नहीं रखती। विदेश से आए लोगों के मामले में अगर देश के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों पर गंभीरता से जांच की गई होती और जरूरी सावधानी बरती गई होती तो शायद बिहार के कुछ जिलों में तस्वीर इस हद तक डरावनी नहीं होती। बहरहाल, विदेश या बाहर से आए लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और उन सब की जांच के बाद ही चैन की सांस ली जा सकती है।
वैसे पटना के बेऊर के तीन युवक अपने आप में मिसाल हैं। सीखने की जरूरत उनसे हैं कि कोई भी अपनों के लिए संकट बनने से बच सकता है। मुंबई में कैंसर पीड़ित का इलाज कराकर एंबुलेंस से पटना लौटे ये तीन युवक अपने घर नहीं गए, बल्कि सीधे पीएमसीएच पहुंचे। जांच में ये तीनों संक्रमित निकले। कल्पना कीजिए कि बाकियों की तरह इन्होंने अगर कोई चूक की होती तो बेऊर इलाके में हालात क्या हो सकते थे।