
रांची . रांची के कैलाशनगर की बुलबुल लॉकडाउन से पहले पारिवारिक समारोह में मायके आई थी। लॉकडाउन के बाद वह अपने एक वर्ष के बच्चे के साथ यहीं फंस गई। उसके पति सोनू ने उसे ले जाने के लिए हजारीबाग में पास के लिए आवेदन किया, लेकिन पास नहीं बना। अब बुलबुल बच्चों के साथ हजारीबाग जाने को बेकरार है, लेकिन नहीं जा सकती। थक कर उसने वार्ड 28 के पार्षद के यहां आवेदन दिया है। इसी तरह रांची के स्वर्ण जयंती नगर केे राजमिस्त्री विनय मुंडा बेरोजगार बैठे हुए हैं। तीन बच्चे और पत्नी के साथ वह लातेहार अपने घर जाना चाहते हैं, लेकिन न तो कोई व्यवस्था है और न अनुमति। उन्होंने भी पार्षद से घर भेजने की गुहार लगाई है। बुलबुल व विनय की तरह 50 हजार से अधिक लोग रांची में फंसे हैं। कोई झारखंड के दूसरे जिले में जाना चाहता है, तो कोई बिहार, यूपी और बंगाल। इसके लिए रोजाना सैकड़ों लोग डीसी कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन कहीं कोई रास्ता नहीं निकल रहा है।रांची के 5000 से अधिक लोगों ने दूसरे राज्यों में जाने के लिए पास मांगा है। इनमें बिहार, बंगाल, अोडिशा, छत्तीसगढ़, असम आदि के लोग हैं। जो आवेदन किए हैं, उनमें से अधिकतर के आवेदन रिजेक्ट हो गए। क्योंकि जब तक परिवहन सेवा शुरू नहीं होगी, तब तक दूसरे राज्य या जिले में जाना संभव नहीं है। इसलिए लोग पार्षद, बीडीओ-सीओ के कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं।पहले लॉकडाउन से ही एक मां अपने दो साल के बच्चे से मिलने को बेकरार है, लेकिन उसकी कोई मदद नहीं कर रहा। वह अपने बच्चे की तस्वीर को कभी चूमती है, तो कभी उससे लिपट कर रोती है। 45 दिन हो गए उसे अपने बच्चे को गोद में लेकर प्यार किए। आजाद बस्ती की नौशाबा परवीन का बेटा जोहान लॉकडाउन-1 से अपनी नानी के पास खंूटी में है। नौशाबा ने बताया कि 22 मार्च को उनकी मां जोहान को लेकर खूंटी चली गई। 23 मार्च से लॉकडाउन लग गया। वे लोग उसे नहीं ला पाए। नौशाबा ने बेटे के लौटने के लिए प्रशासन से अनुमति मांगी है।