
नई दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कोरोना संकट के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके देश भर के पात्र कैदियों को सशर्त जमानत देने की मांग की है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में सात साल से कम की सजा काट रहे और विचाराधीन कैदियों को जमानत या पैरोल दिया जाना चाहिए। बीते दिनों जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने अपने बयान में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को इस मामले में कहा था कि सभी राज्य सरकारें जेल में बंद कैदियों की जमानत के मसले पर एक कमेटी का गठन करें ताकि उनको मानवीय आधार पर जमानत या पैरोल दी जा सके।

गौर करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि कोरोना के मद्देनजर जेलों में बंद डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, गुर्दे व सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित 50 साल से ऊपर के कैदियों की पैरोल व जमानत पर रिहाई के लिए केंद्र या राज्य सरकारों को कोई आदेश नहीं दे सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश एसए बोवड़े और जस्टिस एल नागेश्वर राव की खंडपीठ ने कहा था कि हमें नहीं पता कि सरकार इस बारे में क्या सोच रही है लेकिन अदालत का मानना है कि एक-एक मामले को उसकी अहमियत से परखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि हम इस मामले में कोई आदेश नहीं थोप सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता एडवोकेट अमित साहनी ने अपनी याचिका में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का हवाला देते हुए कहा था कि कोरोना से हाइ ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, गुर्दे और सांस की समस्या से जूझ रहे अधिक उम्र के कैदियों को ज्यादा खतरा है। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं इस मामले का संज्ञान लेकर क्षमता से ज्यादा भरी जेलों से कैदियों की भीड़ कम करने के लिए 23 मार्च को केंद्र और राज्यों को सात साल से कम सजा काट रहे कैदियों को अंतरिम जमानत अथवा पैरोल पर रिहाई के आदेश दिये हैं लेकिन 50 साल से अधिक कैदियों का मामला नहीं उठा है।