
सरायकेला. कोरोनाबंदी में बाहर फंसे प्रवासी मजदूरों को वापस लाने के लिए सरकार अपने स्तर से प्रयास में जुटी है. लेकिन इस प्रयास से भी काफी संख्या में मजदूरों की जल्द घर वापसी नहीं हो पा रही है. ऐसे में बेबस और व्याकुल मजदूर खुद अपनी व्यवस्था से घर लौट रहे हैं. कोई पैदल चल रहा है, तो कोई साइकिल से घर लौट रहा है. घर लौटने की बेकरारी व मजबूरी ऐसी कि लोग चार से पांच सौ किलोमीटर तक का सफर खाली पेट तय कर रहे हैं. इन मजदूरों की बेबसी की कहानी ऐसी है कि सुनकर कलेजा मुंह को आ जाए.ऐसी ही एक कहानी ओडिशा के कलिंगानगर में टाटा स्टील में ठेका मजदूर के रूप में सिविल का काम कर रहे कुछ मजदूरों की है. बंगाल के वीरभूम और पुरुलिया तथा झारखंड के धनबाद और बोकारो के रहने वाले 14 मजदूरों को सरकार की घर वापसी अभियान से घर लौटने की आस बंधी. मगर ठेकेदार और सरकार से घर लौटने में मदद करने की इनकी सारी मिन्नतें बेकार गयीं. डेढ़ महीने से कोरोनाबंदी में इन्होंने जैसे-तैसे अपना जीवन काटा और जब सामने भुखमरी जैसा हालात हो गया, तो इन सभी ने अपनी कमाई से 4500 रुपये में एक-एक नई साइकिल खरीदी. और घर की ओर निकल पड़े. रास्ते में भूख मिटाने के लिए मूढ़ी, सत्तु और चूड़ा खाया. बिना भोजन के फाकाकसी कर दो दिन तक साइकिल चलाकर ये लोग सरायकेला पहुंचे.