
कोरोना महामारी (Corona Pandemic) को लेकर जहां पूरी दुनिया खौफ में है, वहीं पूर्वी सिंहभूम जिले का एक गांव बेखौफ है. यहां के लोग अभी भी आम दिनों की तरह हर काम निपटाते हैं. कोरोना संक्रमण की कोई चिंता इनके मन में नहीं है. हालांकि, सरकार के आदेश को मानते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जरूर करते हैं. ग्रामीणों (Villagers) का दावा है कि उनके गांव तक कोरोना पहुंच ही नहीं सकती है. उनका कहना है कि यहां दूसरे गांव के लोग या सरकारी पदाधिकारी आने की हिम्मत नहीं करते, वहां कोरोना वायरस की पहुंच कैसे होगी. यानी गांव की जो भौगोलिक स्थिति इन्हें पहले अभिशाप लगता था, कोरोना संकट में वह वरदान लग रहा है.डुमरिया प्रखंड में स्थित लखाईडीह गांव तक पहुंचने के लिए तीन पहाड़ी को पार करना पड़ता है. खासकर जंगल और पहाड़ी के बीच 12 किलोमीटर का रास्ता काफी दुरूह और घुमावदार है. पहाड़ी की चोटी पर बसे इस गांव में लोग कोरोना के खतरे से बेखबर आम दिनों की तरह अपना काम निपटाते हैं. पहले तो इस गांव तक पहुंचना लगभग नामुकिन था, लेकिन अब गांव तक पक्की सड़क बन गयी है. इस गांव के आसपास कोई दूसरा गांव नहीं है.कोरोना के खतरे के बीच जब न्यूज-18 की टीम लखाईडीह गांव पहुंची, तो पाया कि यहां के लोग पहले की तरह अपने दैनिक कार्य में लगे हुए थे. इस दौरान कुछ ग्रामीण जंगल के किसी फल के बीज से तेल निकाल रहे थे. ग्रामीणों ने बताया कि वे यह तेल खाने और शरीर में लगाने में इस्तेमाल करते हैं. वहीं महिलाएं अपने घरों की साफ-सफाई और रंग-रोगन में लगी हुई थीं. यानी गांव में कोरोना को लेकर कोई चिंता या खौफ नहीं दिखा. ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें कोरोना वायरस को लेकर कोई डर नहीं है, क्योंकि बाहरी लोगों से उनका कोई संपर्क नहीं है. इसलिए संक्रमण फैल नहीं सकता. चारों तरफ पहाड़ी और जंगल से घिरे होने के कारण वे सुरक्षित हैं.इस गांव में 50 से अधिक घर हैं. गांव में कोई शराब नहीं पीता है. गांववाले कभी किसी विवाद को लेकर पुलिस की चौखट पर नहीं गये. अगर कभी कोई विवाद होता है, तो ग्राम प्रधान की पहल पर उसे सुलझा लिया जाता है. हालांकि, कोरोना वायरस को लेकर प्रशासनिक निर्देश का पालन करते हुए ग्रामीण एक-दूसरे से सोशल डिस्टेंसिंग जरूर रखते हैं, लेकिन सबकुछ पहले की तरह इस गांव में चल रहा है. प्रकृति की गोद में बसा लखाईडीह गांव कोरोना संकट काल में बिल्कुल महफूज है.